सबसे बड़ी औषधि क्या है?
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में यह बात डंके की चोट पर उद्घोषित है कि कोई भी रोग या गड़बड़ी जो मनुष्य के शरीर में पैदा होती है सभी का एक ही कारण है - मनुष्य का गलत रहन-सहन और गलत खान-पान। ये गलत खान-पान और गलत रहन-सहन, शरीर को निर्मल करने वाले अंगों में कार्यभार लाद देते है जिसकी वजह से वे अंग अपना कार्य सरलता से नहीं कर पाते और शरीर में अनवंशनिय तत्त्व इकट्ठे हो कर विकार पैदा करते हैं।
आयुर्वेद में हर रोग के कारणों में आहार व्यवस्था पर विशेष संकेत किया जाता है। रुक्ष भोजन, अतिभोजन और बिना भूख के किया गया भोजन वायु प्रकोप का मुख्य कारण माना गया है। उपचार की बात तो हम हमेशा ही करते है लेकिन प्राथमिक और प्रमाणिक तथ्य यह है कि जब तक मनुष्य अपने आहार विहार नहीं सुधरेगा, तब तक उपचार से अपेक्षित लाभ कभी भी नहीं मिल सकता।
आयुर्वेद का एक सिद्धांत "आहार ही औषधि है" सर्वोमान्य है। पहले नेचरपेथी चिकित्सकों ने इसे अपनाया और अब एलोपैथी वालों ने भी निरोगी होने में आहार की भूमिका स्वीकार की है।
मनुष्य के संबंध में सैद्धान्तिक मत है कि मनुष्य रक्त क्षारीय है। हमारे शरीर में क्षार और अम्ल का संतुलन 80:20 का है। जब तक शरीर में 80% क्षारत्व बना रहता है तब तक मनुष्य स्वस्थ रहता है किन्तु इसमें जब अमल की वृद्धि होने लगती है तो एक न एक रोग घेरने लगता है।
स्वस्थ रहने के लिए क्षार प्रधान आहार लेना अति आवश्यक है। कुदरती भोजन सबसे अहम क्षार प्रधान आहार होता है। फ़ल और सब्जियों का अधिक सेवन करें। चोकर समेत आटे की रोटी, कण समेत चावल, दूध क्षार प्रधान आहार है। लेकिन भोजन के साथ दूध कभी न लें। भोजन के साथ दूध लेने से दूध अम्ल प्रधान हो जाता है और वायु दोष भी पैदा करता है।
चोकर रहत आटा, पालिश किया चावल, चीनी, चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक, तलाभुना भोजन, शराब, मिर्च मसालेदार भोजन और बाज़ार में बिकने वाला गैर कुदरती और गैर मौसमी भोजन सभी अम्ल प्रधान होते है जो रोगों के जन्मदाता है। अतः अम्ल युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन न करें या अधिक सेवन न करें।
भोजन के नियमों पर एक अलग से लेख है जरूर पढ़ें।
भोजन के नियम Click here to read now
आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें।
सारे सुख निरोगी काया।
कोई भी दवा चिकित्सक के परामर्श से ही प्रयोग करें।
0 Comments
Ask a question