आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान पंच तत्वों पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि पर आधारित है। इस लेख में अग्नि तत्व का वर्णन किया गया है।
अग्नि मंद क्यों होती है?
मंद हुई अग्नि क्या करती है?
मनुष्य के शरीर में अग्नि स्थान
बल, तंदरुस्ती, लंबी उम्र और शरीर की सभी क्रियाएं मुख्य रूप में अग्नि पे निर्भर करती है। अग्नि ही शरीरक क्रियाओं को ऊर्जा प्रदान करती है। अग्नि ही भोजन को पचा कर ऊर्जा के भिन्न भिन्न रूप में परिवर्तित कर शरीर की सभी क्रियाओं को चलाने हेतु भेजती है।
जब तक मनुष्य के शरीर की अग्नि समान रूप में चलती रहती है तब तक तंदरुस्ती बनी रहती है शरीर रोग मुक्त रहता है। जब अग्नि मंद हुई रोगों का आगमन शुरू हो जाता है और सुख और तंदरुस्ती जाती रहती है।
मंद अग्नि
आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान के मूल सिद्धांत के अनुसार मंद अग्नि सब रोगों जन्म देती है। हर एक रोग के पीछे कहीं न कहीं मंद अग्नि का कारण जरूर होता है। जब तक अग्नि को सम अवस्था में नहीं लाया जाता तब तक शरीरिक क्रिया प्रणाली के बिगड़ को ठीक नहीं किया जा सकता।
अग्नि को ठीक से समझने के लिए अग्नि के 3 भाग समझने होंगे।
1) जठर अग्नि
2) धातु अग्नि
3) भूत अग्नि
1) जठर अग्नि
शरीर में जठराग्नि का स्थान आमाशय और ग्रहणी (Stomach & Duodenum) के बीच माना जाता है। जठराग्नि भोजन को रस और मल में परिवर्तित करती है। जठराग्नि ही दूसरी सभी अग्नियों को संचालित करती है।
जठराग्नि ठीक होने पर सभी धातुओं का सही निर्माण होता है और शरीर सुख का अनुभव कर पाता है।
जठराग्नि कम होने पर भोजन पचाने की क्रिया धीमी हो जाती है। भोजन समय पर न पचे तो सड़ने लगता है। रस कच्चे रह जाते है। सभी धातुएं दूषित होने लगती है। बहुत सी गम्भीर बीमारियों के लिए रास्ता खुल जाता है। जठराग्नि का कम होना ही मंद अग्नि के लिए जिम्मेदार है।
2) धातु अग्नि
भोजन पचने से जो रस बनता है उससे 7 प्रकार की रस धातुओं का निर्माण होता है। इन 7 रस धातुओं का निर्माण 7 प्रकार की धातू अग्नियों से होता है। इस लिए 7 प्रकार की धातू अग्नि कही जाती है। रस, रक्त, मांस, मेध, अस्थि, मज्जा और शुक्र सभी धातू अग्नि का प्रयोग कर भोजन में से अपनी जरूरत अनुसार पोषक तत्व निकाल मूल धातु में मिलाने योग बन लेती है।
सभी धातुओं के अपने अपने स्रोत है जो रस को उन तक पुहंचा देते है। ये स्रोत सारे शरीर में फैले होते है। आधुनिक विज्ञान इसको इम्युनिटी का नाम देती है।
जठराग्नि का धातु अग्नि से संबंध ही धातु को नियंत्रित करता है। जठराग्नि अच्छी प्रज्वलित हो तो रस धातुएं अधिक किर्याशील रहती है। अगर जठराग्नि जरूरत से अधिक किर्याशील हो जाये तो रस धातुओं को जला देती है जिस वज़ह से रस धातु की कमी हो जाती है। ऐसा होने पर भूख प्यास अधिक लगने लगती है और शरीर में गर्मी बढ़ जाती है। हाथ पैरों में सेक निकलने लगता है।
3) भूत अग्नि
आयुर्वेदिक चिकित्सा पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि पाँच महाभूतों पर आधारित है। भूत अग्नि पंच तत्वों को स्थायी रूप प्रदान करती है। ये अग्नि मंद हो जाने पर भोजन रस से धातुओं के निर्माण की बजाए मल अधिक बनने लगता है। धातुओं की उतपत्ति में कमी आ जाने से शरीरिक क्रिया प्रणाली विकार ग्रस्त हो जाती है।
अग्नि मंद होने से भोजन पाचन योग्य नहीं बन पाता और इस कच्चे रहे भोजन से रस भी शुद्ध नहीं बन सकता। इस कच्चे पदार्थ को आँव कहा जाता है। ये आँव ही सभी रोगों की जड़ है। ये आँव वायु कफ़ पित्त, सभी धातुओं और धातु स्रोतों को दूषित कर देता है। इस लिए इसको आँव विष कहा जाता है। ये आँव सभी बीमारियों का मूल कारण होता है।
मंद अग्नि होने के कारण
मंद अग्नि होने का सबसे बड़ा कारण भोजन के बाद पानी पीना होता है। भोजन के साथ कुछ भी पीना नहीं होता। पानी जूस लस्सी चाय शर्बत कोल्ड ड्रिंक या दूध कुछ भी नहीं।
थोड़ी थोड़ी देर बाद कुछ खाते रहना भी मंद अग्नि पैदा करता है। पहले खाये भोजन को पचने का समय नहीं दिया और ऊपर से और खा लिया। ऐसा करने से तेज़ाब बनने लगता है और पाचन शक्ति बिगड़ जाती है।
कुदरती भोजन का कम इस्तेमाल करने वाले लोगों को मंद अग्नि और आँव की समस्या अधिक होती है। इसलिए कुदरती भोजन फ़ल और सब्जियों का अधिक इस्तेमाल करें।
फैक्ट्री का बना भोजन आज कल अधिक इस्तेमाल होने लगा है। ये भोजन भी दूषित रसों को पैदा करता है। दूषित रस अग्नि रस स्रोतों को दूषित कर देते है। रोग निरोधक शक्ति की कमी, कैंसर, शुगर, दिल की बीमारियों जैसे गंभीर रोगों का सबसे बड़ा कारण यही होता है।
अंग्रेजी दवाओं का अधिक इस्तेमाल भी अग्नि तत्व को नुकसान पुहंचाता है।
आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें।
सारे सुख निरोगी काया।
कोई भी दवा चिकित्सक के परामर्श से ही प्रयोग करें।
Ayurved Sagar
Vaid Karamjeet Singh
ayurvedsagarkhanauri@gmail.com
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