तंदरुस्ती ही जीवन है।

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सारे सुख निरोगी काया

तंदरुस्ती

तंदरुस्ती और समाज का सबसे बड़ा दुश्मन नशा है।
तंदरुस्ती अगर दवाओं में होती तो डॉक्टर और वैध कभी बीमार न होते।
तंदरुस्ती अगर खरीदी जा सकती, अमीर तो क्या गरीब से गरीब भी जैसे तैसे खरीद ही लेता।
तंदरुस्ती हस्पतालों में और डॉक्टरों की डिग्रियों में भी नहीं है।
तंदरुस्ती है धर्म और सेहत के कुदरती नियमों की पालना करने में और सब्र संतोख के साथ जीने में, जो आज कल किसी के पास है ही नहीं।
तंदरुस्ती का सर्वोत्तम योग सुरत शब्द का अभ्यास है।
तंदरुस्ती परमार्थ का मूल स्रोत है।
तंदरुस्ती मनुष्य जीवन का सार है।
तंदरुस्ती का दारोमदार खान-पान पर निर्भर करता है। खाना तंदरुस्त भी रखता है और बीमार भी कर सकता है। जीने के लिए खाना आवश्यक है लेकिन खाने के लिए ही जीना व्यर्थ है। सिर्फ खाने के लिए ही जीने की जबरदस्त मिसाल मनुष्य है क्योंकि इस सृष्टि में मनुष्य से अधिक कोई नही खाता और मनुष्य से अधिक कोई बीमार भी नही होता, या फिर मनुष्यों के संपर्क में रहने वाले जीव बीमार होते हैं क्योंकि उनका खान पान भी गैर कुदरती हो जाता है।
तंदरुस्त रहना सर्वोत्तम धर्म है और रोगी होना सबसे बड़ा अपराध और पाप है।
तंदरुस्त प्राणी ही सत्संग, सेवा और भजन सिमरन कर सकता है।
तंदरुस्त गरीब, रोगी करोड़पति से अधिक सुखी होता है।

अस्पतालों और आदालतों से गरीबी अच्छी होती है।

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Vaid Karamjeet Singh
ayurvedsagarkhanauri@gmail.com

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